ठण्ढ में सौरमंडल
आसमान के लाखों तारे
देखो थरथर काँप रहे हैं
धरती की रफ्तार भी देखो
दिन-व-दिन घट रहे हैं
कभी चाँद दिखलाइ देते
कभी चुपके से छुप जाते हैं
सौरमंडल भी अस्त-व्यस्त है
ग्रह-उपग्रह घर में बैठे हैं
जब सूर्य ने ग्रहों से पूछा
काम छोड़ क्यों बैठे हो ?
न दिन-रात, न मौसम बदलेगा
चक्कर लगाना क्यों छोड़ दिये हो ?
तब ग्रहों ने मिल कर समझाया
ठण्ढ के कारण काम रुका है
सूरज बोला, काम करो तुम
मैं कोई उपाय निकालूँगा
मुझ में तो गर्मी हीं गर्मी है
तुझे गर्म रखने तेरे पास आउँगा
उस दिन से जब ठण्ढ बढ़ जाते
सूरज ग्रहों के पास चले जाते
इसलिए भर-भर दिन सूरज
आसमान से गायब हीं रहते
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (09-12-2013) को "हार और जीत के माइने" (चर्चा मंच : अंक-1456) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक धन्यवाद
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद
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