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रविवार, 27 अप्रैल 2014

गोबर गणेश

177. गोबर गणेश

दियाद-बाद महरौर बालीकेँ धकियेने रहै छलै ।जे आबै से दस टा बात सुना दै ।ओना तँ महरौर बाली ककरोसँ कम नै छलै, मुदा लोक-लाजक डरसँ सब टा बात सुनैत रहि जाइ ।लड़बो-झगड़बो करतै तँ कतेसँ !घर-बाहर सभक लेल तँ एसगरूए छलै ।ओना तँ पट्ठा पहलवान सन घर बला छलै, मुदा देहे-दशा रहने की हेतै !ज्ञान तँ कनियो नै छलै ।ओ बेचारा अपन कनियाँसँ सदिखन डेराएले जकाँ रहै ।सब ओकरा गोबर गणेश कहै ।शुरू-शुरूमे तँ महरौरबाली सभक विरोध केलक, मुदा बादमे इहो गोबर गणेश मानि लेलक । आइ-काल्हि गर्मी बड पड़ै छै ।भरि-भरि दिनक थाकल देह गर्मी बर्दास्त नै कऽ सकलै आ गस खा कऽ खसि पड़लै ।कपार फूटि गेलै ।वेहोश भऽ गेलै ।जखन महरौर बालीक आँखि खुजलै तँ देखलकै जे घरबला पंखा हौंक रहल छै ।चारि दिन धरि वेहोशीक हालतमे घरबला सेवा केने छलै ।आब गोबर गणेश माननाइ महरौरबालीकेँ अपगराणि जकाँ बुझाइ छलै ।

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