प्रिय पाहुन, नव अंशु मे अपनेक हार्दिक स्वागत अछि ।

सोमवार, 5 मई 2014

नोचैत दाढ़ी

181. नोचैत दाढ़ी

फरिकमे एक टा बुढ़ीक आत्मा परमात्मासँ मिल गेल छलै ।ठीक रविक भोरे भोर ।ड्युटी बला आदमी सिन्टू लेल महाविपतिक घड़ी छलै ।रविएकेँ तँ छुट्टी भेटै छै तेँ अपना संग कपड़ो-लत्ताक सफैया रविए दिन होइ छै ।ई घटनासँ सफैयाक कार्यक्रम दस दिन धरि रूकि गेल छलै ।बेचारा सिन्टू परेशान भऽ गेल छल ।कपड़ा-लत्ता तँ ठीक छलै, मुदा दाढ़ी . . .सफाचट रहै बला जमानामे दढ़िआएल मुँह देख लोक एना देखै जेना आन ग्रहक जीव होइ ।जँहि-तँहि लोक पूछि दै ।लोक सब या तँ साधु-महात्मा बुझि लै वा स्क्रू ढीला बुझि लै ।केनाहुतो एते परेशानी झेलैत पाँच दिन बीत गेलै, मुदा सिन्टुक मोन अरिया गेलै ।दिन बितने दाढ़ीक नोचनी बढ़ैत जाइ तेँ अपनो मोन टूटैत गेलै ।अन्तत: छठम दिन हिम्मत हारि गेलै, सोचलक "लोक एहिना जनमै छै, मरै छै ।एक-आध दिन शोक भेलै, और की !आब उन्नत विज्ञानक युगमे शास्त्रक गप बेसी महत्व नै रखै छै ।आजुक लोक आजाद छै ।सब बन्हनसँ मुक्त छै ।पाँचकाठी दैये देलै ।बस अपन फर्जसँ मुक्ति भेट गेलै ।आब पुरना बातपर अड़तै तँ अपने जान चलि जेतै . . .चल जे हेतै से देखल जेतै"

सिन्टू क्लिन सेव्ड मुँहपर हाथ फेड़ैत दफ्तर जा रहल छल ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें