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शनिवार, 12 जुलाई 2014

तूँ मनुख बन

बाल कविता-131
तूँ मनुख बन

डर तोरा नै पछारि सकौ
हिया नै तोहर हारि सकौ
जीत होउ, ने होउ पतन
तूँ मनुख बन, तूँ मनुख बन

प्रीत बनि बेसी पसर नै
घृणा बनि बेसी चतर नै
रह सदति जहिना पवन
तूँ मनुख बन, तूँ मनुख बन

ठानि ले एक बेर तूँ जे
कर सफल, भऽ जाउ जे से
काज बड, लघु छै जीवन
तूँ मनुख बन, तूँ मनुख बन

जन्मसँ ने किओ मनुख होइ
आनक दुखसँ जकरा दुख होइ
सभक हित लेल कर जतन
ई मनुख बन, ई मनुख बन

अमित मिश्र

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