प्रिय पाहुन, नव अंशु मे अपनेक हार्दिक स्वागत अछि ।

गुरुवार, 23 अक्तूबर 2014

गजल-चान दिपली बनि सजै छै

गजल- 2.43

जिम्हरे देखू तिम्हरे जगमग करै छै
उतरि आयल अछि चान दिपली बनि सजै छै

आइ ललसा पुरतै चकोरक छै अमावस
चान अन्हरिया बनि पिया लग जा मिलै छै

सब हँसै छै मुँह झाँपि देखू ओकरापर
जे कतौ लोकसँ अपन दुखड़ा कहै छै

मूर्त केने छी भावकेँ जे छल अमूर्ते
ते सदति रचनाकेँ सगर नीकसँ पढ़ै छै

आइ माहुर सन मोन भेलै देख जगकेँ
पक्षमे नै बेटीक एगो माँ रहै छै

2122-2212-2212-2

2 टिप्‍पणियां: