गजल- 2.43
जिम्हरे देखू तिम्हरे जगमग करै छै
उतरि आयल अछि चान दिपली बनि सजै छै
आइ ललसा पुरतै चकोरक छै अमावस
चान अन्हरिया बनि पिया लग जा मिलै छै
सब हँसै छै मुँह झाँपि देखू ओकरापर
जे कतौ लोकसँ अपन दुखड़ा कहै छै
मूर्त केने छी भावकेँ जे छल अमूर्ते
ते सदति रचनाकेँ सगर नीकसँ पढ़ै छै
आइ माहुर सन मोन भेलै देख जगकेँ
पक्षमे नै बेटीक एगो माँ रहै छै
2122-2212-2212-2
जिम्हरे देखू तिम्हरे जगमग करै छै
उतरि आयल अछि चान दिपली बनि सजै छै
आइ ललसा पुरतै चकोरक छै अमावस
चान अन्हरिया बनि पिया लग जा मिलै छै
सब हँसै छै मुँह झाँपि देखू ओकरापर
जे कतौ लोकसँ अपन दुखड़ा कहै छै
मूर्त केने छी भावकेँ जे छल अमूर्ते
ते सदति रचनाकेँ सगर नीकसँ पढ़ै छै
आइ माहुर सन मोन भेलै देख जगकेँ
पक्षमे नै बेटीक एगो माँ रहै छै
2122-2212-2212-2
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंदीपोत्सव की मंगल कामनाएं !
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हार्दिक आभार राजीव झा जी ।साथ हीं छठ पर्व की शुभकामनाएँ
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