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रविवार, 20 दिसंबर 2015

उगना

बाल कविता-223
उगना

बाबा विद्यापतिक आंगन
एलाह उगना चाकर यौ
पएर दबाबथि, टहल बजाबथि
खूब करथि ओ आदर यौ
अन्न नहिं, भांगे टा केवल
पेटमे भरि राखल यौ
काजक बदले गीत सुनै लेल
भेल छलथि पागल यौ
नेना-भुटका बात कहै छल
खिसियाबै अभागल यौ
तैयो सबहक काज करथि ओ
गप खराप ने लागल यौ
मारि खोरनाठी देह फुलेलनि
विद्यापतिक कनियाँ यौ
छलथि महादेव उगना बनल
घुरलथि अपन दुनियाँ यौ
काटि अहुछिया कानि रहल
हुनके लेल ई मिथिला यौ
नीक कर्मसँ बनू प्रियगर
रहू ने घरमे शिथिला यौ

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