बाल कविता-226
उल्टा-पुल्टा
लागै सूरज पूबसँ पश्चिम
लगा रहल छै चक्कर जी ।
मुदा लिखल छै धरती नाँचै
बात माँनब हम कक्कर जी ।।
चान मेघ त' संग उड़ै छै
तखन होइ नै टक्कर जी ।
लाख तरेगण उप्पर लटकल
राज कथी छै एक्कर जी ।।
कतौ छै गर्मी कतौ ठंढी
मोसम छै घनचक्कर जी ।
उल्टा-पुल्टा प्रकृति छै त'
पाठ पढ़ब फेर कक्कर जी ।।
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