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शुक्रवार, 19 जनवरी 2018

सूरजकेँ भेलै सर्दी

अझुका रचना-बाल कविता
289. सूरजकेँ भेलै सर्दी

सूरज रामकेँ भेलै सर्दी
खसलै बनि क' ओसक झीसी
तरेगण सभमे पटलै सर्दी
खसलै बनि कुहेसक झीसी

जाड़क मारल सूरूज पड़ेलै
जा क' सीरक त'र नुकेलै
तें त' भेलै रौद निपत्ता
सगरो भेल कुहेसक सत्ता

बोखार भैलैए सौकेँ पार
देहक दर्द नै छै सम्हार
बनि क' डाक्टर होउ तैयार
करियौ बौआ अहाँ उपचार

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