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शुक्रवार, 19 जनवरी 2018

ककबा दाँत बला छै

आझुका रचना- बाल कविता
288. ककबा दाँत बला छै

कुर्सीकेँ छै बाँहि दुइ टा
काज मुदा नै क' सकतै
टेबुलकेँ छै पएर चारि टा
डेग एको नै चलि सकतै

माँथा त' गदहोकेँ होइ छै
बुधि ने ओकरा भ' सकतै
सुराहीकेँ छै पातर घेंटी
गीत ने सुन्दर गाबि सकतै

ककबा सेहो दाँत बला छै
काटि मुदा ने किछ सकतै
आलू सेहो आँखि बला छै
देख मुदा ने किछ सकतै

बकराकेँ होइ दाढ़ी कारी
की ओ साधु बनि सकतै
जीउ सेहो बानरकेँ होइ छै
आदिक स्वाद त' नै बुझतै

एकहिं टा मानव छै एहन
उपयोग सभक करै कहुना
एहि लेल सर्वश्रेष्ठ कहाबै
ईश्वर केर सुन्दर रचना

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