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शनिवार, 14 अप्रैल 2012

गजल

गजल

राति देखलौ सदियह तोर रूप गे चान हमर जान ल' गेलेँ
जान हमर लिखल तोरे नामे छलौ जान हमर प्राण ल' गेलेँ

पहिल चिन्नी मिला प्रेम के पानि सँ गाढ़ बनौलेँ प्रेम के चाशनी
रंग-रूप यौवन राति चमका क' प्राण हमर इमान ल' गेलेँ

केलेँ सुशोभित नेह उपवन रंग-बिरंगक तितली बनि क'
अनमोल पराग राति पिया क' गे चान हमर गुमान ल' गेलेँ

एहन आदत लागल जँ तोरा नै देखी मोन हमर नै लागैए
आँखि बन्नो मे तोरे त' हम ताकै छलौँ जान हमर मान ल' गेलेँ

आबि हकिकत मे एकबेर गाम गोरी हमरो त' मान राखि ले
"अमित" भटकैत मोन के सम्हारि क' मान हमर शान ल' गेलेँ

वर्ण-24
अमित मिश्र

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