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रविवार, 17 मार्च 2013

नारिक रूप


"नारिक रूप"

सब दिन देखैत छी
सब अखबारक पहिल पन्नापर
आइ एतऽ तँ काल्हि ओतऽ
छीन लेल गेल नारिक इज्जत
डाहि देल गेल कोमल कायाकेँ
वा चापि देल गेल घेँट कोनो निसबद रातिमे
हाट बजार सब ठाम देखैत छी
छेड़छाड़ होइत कोनो नवयौवना संग
आ ओहि नवयौवनाक राँगल चामपर
आबै छै कने लाजक वा क्रोधक लाली
सुरमासँ कारी भेल आँखि आ रंगीन पिपनीपर
खीँच जाइ छै गोस्साक चेन्ह
संगहि राँगल ठोरसँ निकलैछ मीठ तरंग
"की तोरा घरमे बहिन नै छौ?"
कहबाक मने रहै छै एक्के टा जे
हमर सम्मान कर
भऽ सकै यै ,हमरा बहिन नइ होइ
भऽ सकै यै ,हम कहियो पति बनबे नै करी
तखन नारिक ई दुनू रुपकेँ हम सम्मान नै करब
तँ की हम नारिक अपमान करब?
नै ।हम एखनो नारिक एकटा रूपकेँ मानै छी
जे रुप हमरा जीवन देलक
ओ रूप जेकर कोरामे खेलल छी
ओ रूप थिक माएक रूप
तेँ हम नारिक इज्जत कोनो पत्नी-बहिन रूपमे नै
बल्कि अपन जननीक रूपमे करब

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