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रविवार, 17 मार्च 2013

लूरि


"लूरि"

भगवान बड कोमल करेज बला छथि
तेँ दै छथि सबकेँ सोझ-साझ हाथ-पएर
मुदा कखनो कऽ ककरो लेल
भऽ जाइ छथि नर्मोहिया
आ गढ़ि दै छथि टेढ़-बाकुच
टाँग-हाथ वा कोनो और अंग
मिझा दै छथि आँखिक इजोत
एहि सोझ अंग बला समाजमे
बना दै छथि ओकरा मजाख
मुदा हमरा नजरिमे ओ अपंग श्रेष्ठ अछि
पएर ,हाथ ,आँखि बला सब किछु रहितो
नै कऽ सकै छथि एहन काज
नै चला सकै छथि हाथसँ तीनपहिया साइकिल
नै घुसकि सकै छथि चुत्तरपर मिलक-मिल
मात्र कऽ सकै छथि कुर्सीपर बैसल मेहनत
आइ आँखि बला मनुख ककरोसँ गप नै करै छथि
मुदा एकटा आन्हर अपन वाकपटुतासँ
हमरा अहाँक जेबीक टाका
अपना जेबीमे आनि सकै छथि
सोझ अंग बलाक गपसँ भऽ सकै छै हंगामा
मुदा सबहक करेज पघिल जाइ छै
टेढ़-बाकुच अंग बलाक गपपर
तेँ हमरा नजरिमे श्रेष्ट वएह छै
जेकरा लग छै
गपसँ मोन मोहि लेबाक लूरि ।

अमित मिश्र

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