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रविवार, 17 मार्च 2013

"हँसी


"हँसी"

कोनो चौकक चाह दोकानपर
बूढ़बा भजारक बीच चौल
आब नै होइ छै एहन साँझ
नवका सासुरमे सारि सरहोजि संग
फोनेपर भऽ जाइ छै सबटा गप
आब नै भेटैछ पहिने सन प्रेम
आब नै गुंजैछ पहिने सन हँसी
एहन गप नै छै जे लोक आब नै हँसै यै
पहिनहितो हँसै छल ,एखनो हँसै यै
मुदा मोनहि मोन ,दोसरक नाकामीपर
एहि वातावरणसँ ठहक्का शाइत बिला गेलै
वा लागि गेलै पूर्ण सूर्यग्रहणसँ बड़का ग्रहण
इहो भऽ सकै छै जे एहि व्यस्त जीवनमे
लोक बिसरि गेल ठिठिएनाइ
आब मात्र भेटै यै ,परिवहनक हल्ला बीच कन्नारोहट
किओ टाकाक खगतासँ कानैए तँ किओ बढ़तासँ
किओ काजक अभावमे तँ किओ काजक बोझसँ कानैए
चाहे कोनो कारण किए नै होइ
मुदा मुँहसँ सिसकिए निकलै छै
हमरा सब ठाम सुनाइत अछि
शमशानक कोनो कोणपर मचल कन्नारोहट
जे पानिक स्पर्शसँ और तीव्र भँ जाइत अछि
ई कन्नारोहट चलिते रहत ,एहिना चलत
जखन धरि लोक स्वार्थ नै छोड़त
आपसी प्रेम आ सहयोगक भावना नै जनमतै
तखन धरि नै सूनि सकै छै
युवा ,बूढ़ वा कोनो जनमौटी नेनोक हँसी

अमित मिश्र

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