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सोमवार, 11 मार्च 2013

सपना

बाल कविता-4
सपना

राति अन्हरिया तरेगण चमकैत
मन्द-मन्द शीतल पवन बहैत
छतपर खूब औंघी लागैत छल
मीठ-मीठ सपना आबैत छल

दूर गगनमे छल रेल चलैत
ग्रह-उपग्रह सब खेल करैत
शानि ,मंगलकेँ पटकैत छल
मीठ-मीठ सपना आबैत छल

सुन्दर सजल केबार खुजैत
सोनाक फूल आ घर लागैत
परी सब उड़ि-उड़ि नाचैत छल
मीठ-मीठ सपना आबैत छल

पुष्पक विमानपर हम उड़ैत
चोकलेट खाइत विदेश घुमैत
ओतै रहै लेल मोन कहैत छल
मीठ - मिठ सपना आबैत छल

अमित मिश्र

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