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गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

कौआ आ सुग्गा

बाल कविता-31
कौआ आ सुग्गा

लाल लोल छै बड अनमोल
खा मिरचाइ बाजै मीठ बोल
प्रियगर सुग्गा चमकैत आँखि
हरियर-हरियर शोभैत पाँखि
भोरे-भोर लै रामक नाम
तें बनि गेल घरक समाँग

कारी कौआ कारिये छै लोल
बिना सुरकें करुगर बोल
अन्हरिया राति समेटने आँखि
कारी-कारी डेराउन पाँखि
तामस चढ़बै कुचरि-कुचरि कऽ
तें छिछियाइ उजरि-पुजरि कऽ

ले ले दै छी बड पैघ जन्तर
सुग्गा-कौआमे देखि कऽ अन्तर
भेटल एखटा नीक सीख एखन
मीठगर बाजि खुश रहब सदिखन

अमित मिश्र

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