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शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

चमकैत चन्ना

बाल कविता-32
चमकैत चन्ना

फूलल सोहारी सन चमकैत चन्ना
कखनो कऽ मेघखण्ड झाँपै छै
खन पश्चिम खन पूरब चन्ना
दौड़-दौड़ कऽ अम्बर नापै छै

घटि-घटि कारी बनि जाइ चन्ना
बढ़ि-बढ़ि मोन हर्षाबै छै
नित राति आबि धरतीपर चन्ना
भू बहिनसँ राखी माँगै छै

खिड़की दऽ आबि सपनामे चन्ना
दूध-भात, पूआ खुआबै छै
देखिते सूरजकें झटकैत चन्ना
फूर्र दऽ नभ दिश मागै छै

अमित मिश्र

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