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गुरुवार, 5 मई 2016

गजल- हाड़ मांसक बनल मशीन

जाहि घरमे भूखल दीन अहाँ देखने होयब
हाड़ मांसक बनल मशीन अहाँ देखने होयब
एक पाइक लेल पराण अपन बेच दै छै ओ
गाम घरमे एहन दीन अहाँ देखने होयब
खेतकेँ जे कोड़ि उगा रहलै सोन सन उपजा
ओकरो मन सदति मलीन अहाँ देखने होयब
आँखिमे जनमल सपना अचके तोड़ि दै विधना
डरसँ तेँ हेरायल नीन अहाँ देखने होयब
छूबि दै सोना जँ अमित तँ बनै माँटिकेँ टुकड़ा
खूब एहन भाग्यसँ हीन अहाँ देखने होयब

२१२२-२११२-११२२-१२२२
अमित मिश्र

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