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बुधवार, 8 मई 2013

मेघक नाह

बाल कविता-46
* मेघक नाह *

सदिखन उड़ै इम्हर-उम्हर
खन भऽ कारी खन उज्जर
सेनूर घोरल नभ सुन्नरमे
ई नाह लागै भरल भरिगर

धरती परहक सुखा कऽ सागर
भरि पानि लऽ जाइ छै उपर
सूरज-चानक पियास मेटा कऽ
उझलै धरतीपर पानिक गागर

कखनो रौदमे छाहरि कऽ दै
कखनो ठण्ढा पाथर दऽ दै
कखनो तरेगणकें नुका लऽ जाए
कखनो भरि दिन अन्हार कऽ दै

चिड़ाँइ बनि उड़ि चल मीत हमर
देख मेघक नाह उड़ै छै सगर
एकर सबारी बनि घूमब सौरमण्डल
भरि राति रहब, चलि आएब भिनसर

अमित मिश्र

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