प्रिय पाहुन, नव अंशु मे अपनेक हार्दिक स्वागत अछि ।

रविवार, 23 जून 2013

असम्भव काज

बाल कविता-75
असम्भव काज

नदी बीच छै एकटा नाह
ताहिपर गोपी चरबाह
आरो छै दू बोझ जनेर
ताहिपर चुट्टी जेरक जेर
जाइते सबकेँ पानिपर धियान
सोचलक चुट्टी करब असनान
एक्के बेर सए पाँच हजारमे
सब किओ कूदल माँझ धारमे
तखने एलै पानिक हिलकोरा
बहि गेलै झट दऽ सभक जोड़ा
बाजल एकटा बुढ़बा चुट्टी
असम्भव काज कराबै छुट्टी
जे कऽ सकें सएह कर भाइ
नदी संग नाह भासल जाइ

अमित मिश्र

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें