बाल कविता-68
तरेगणक जनम
फुक्का बाला फुक्का फूकै
भरि भरि हवा फूलाबै
ताहिमे दऽ नन्हकी कंकर
किछु जन्तर-मन्तर बाजै
फेर छोड़ैते पातर डोरी
हवा उपर लऽ भागै
एकटा दू टा सए हजार
बहुत रंगसँ नभ साजै
सबटा फुक्का उपर जा
चन्नापर ढाही मारै
फटाक फटाक फुक्का फूटै
सबटा कंकर छिड़ियाबै
इम्हर-उम्हर जिम्हर-तिम्हर
भुक-भुक इजोत देखाबै
एहिना जनमल सब तरेगण
राति कऽ देह चमकाबै
अमित मिश्र
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