5.05 अन्हरिया भेल सबल
हुलकि बुलकि सभ दिन दै छल
से चान मलिछाह पड़ल
आइ अन्हरिया भेल सबल
छुट्टीपर छै सभ तरेगण
भगजोगनी छै मामा गाम
बिजलौका नै आबि सकैए
देब अहाँ जँ कतबो दाम
हाथ हाथ नै सूझि रहल छै
ठेस लगा क' लोक खसल
आइ अन्हरिया भेल सबल
बहिते बहिते ठमकि गेल छै
हवा बिसरलै अपन बाट
गर्मी सेहो नाम केने छै
भेंटि रहल नै एकर काट
कारी कारी मेघ भयावह
छै अकासमे आइ भरल
आइ अन्हरिया भेल सबल
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-06-2018) को "पूज्य पिता जी आपका, वन्दन शत्-शत् बार" (चर्चा अंक-3004) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
बड्ड नीक कविता
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