छिनरपन
अनायास अन्हार बाट गमकि उठै छै
जेना गुलाब जलक बर्षा भऽ रहल हो
ई बरखा बाटक गंदगीकेँ ओहिना छोड़ि दै
कने दूर परक बसात ओहिना भभकैत रहै
गरीबक चाम सन सुख्खल ठोरपर
अमीरक चरबी सन लाली लेपल-पोतल छै
शान्त सागरमे उठैत तीव्र सुनामी जकाँ
रुनूर-झुनर बाजि उठैछ हाथ-पएरक जंजीर
कारी कोटमे ओझरा कऽ कारी भेल कानून, मुदा
एकरोसँ बेसी कारी अन्हरजाली लगेने आँखिमे
दुनियाँ भरिक नग्नताक प्रतिनीधित्व करैत
मँहगाइये जकाँ डाँरक लचकी बढ़ैत, बढ़िते जाइत
झूठ, छल भरल नेताक दस पन्नियाँ भाषन जकाँ
दस बीतक नकली आ विचित्र केश लटकौने
इयरफोन ठूसि कऽ बहीर बनल ओ छौड़ी
अन्हरिया रातिमे, निचैन सूतल सड़कपर जाइछ
एते पैघ अपगुणकेँ श्रृंगारक नाम दऽ गुनगुनाइत जाइछ
एहने अन्हार, सूनसानमे कतेको इज्जत लुटाएल छै
कतेको कारी धन्धा एहने कारी रातिमे होइ छै
ओ निश्चिन्त भेल दारूक नशामे डोलैत जाइछ
अपन आ देशक हालत जानैत-बुझैत जाइछ
चिन्ताक कोनो चेन्ह नै, केवल मुस्कैत अछि
अहीं कहू, एकरा फैसन कही वा छिनरपन ?
अमित मिश्र
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