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गुरुवार, 15 अगस्त 2013

स्वतंत्रता

136. स्वतंत्रता

दस एकड़मे पसरल प्रांगनमे खूब चहल-पहल छलै ।सभक मुँहपर खुशीक चेन्ह साफ झलकै छलै ।रंग-रोगनक बाद चमकि गेल छलै जेलक बन्द प्रांगन ।पुलिस आ कैदी सभक देहपर नव वर्दी चारि चान लगबैत छलै ।एक कोनमे एकटा कैदी मन्हुआएल पड़ल छलै ।एकटा सिपाही ओकरा कहलकै "तुम अपना वर्दी काहे नै पहिनता है ?"
कैदी बाजल "कोन खुशीमे नव कपड़ा पहिरियै ?"
ओकरा हेय दृष्टीसँ देखैत पुलिस बाजल "तुमको मालुम नै आइ स्वतंत्रता दिवस है ।साला भारतिय हो कर भी ई सब कुछ नै जानता है ।"
कैदी बैसैत बाजल "अरे साहेब, जाहिये भारतक कानून निर्देष रहितो हमरा उम्रकैद देलक तहियेसँ हम भारतक नाकरिक नै रहलौं ।हमरा लेल एतुका कानून छैहे नै तखन हम एतुका कोना भेलौं ?...और सरकार स्वतंत्रता अहाँकेँ भेटल हम तँ एखनो परतंत्र छी ।"
कैदीक बात सूनि सिपाही माँथ कुड़ियाबऽ लागल ।

अमित मिश्र

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