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बुधवार, 5 जून 2013

गर्लफ्रेन्ड

विहनि कथा-51
गर्ल फ्रेन्ड

रधु सदिखन मोबाइल कानसँ सटेने रहैत छल ।देर राति धरि घरसँ बाहर मोटरसाइकिल हुड़हुड़ाबैत रहै छल ।गाम-घरमे दबल मुँहे एकरे चर्चा होइत छल ।किछु गौआँ सब रधुक बाबाकेँ शिकाइत केलकनि जे छौड़ा अगल-अलग छौड़ी संग हाट-बजार घुमैत रहैत अछि ।एक दिन बाबा रघुसँ पूछि देरखिन "गौआँ सब उल्टा-पुल्टा बाजै छौ ।लड़की संग किए बौआइत छें ।"
रघु बाजल "बाबा नवका जमानामे सब चलै छै ।ओनाहितो कहल गेल छै जे कामयाब मरदक पाछु एकटा महिलाक हाथ रहै छै"
" मुदा पहिने ककरो हाथ धऽ घर आनि ले ।अलग-अलग महिलासँ भागक अवरोहे हेतौ ।"
" बाबा, हमरा बेसी कामयाब बनबाक अछि तेँ बहुते गर्लफ्रेन्ड अछि ।आइ-काल्हि गर्लफ्रेन्ड रखनाइ इज्जत बात छै ।" ई कहि रघु चलि गेल ।बाबा बहुत देर धरि सोचैत रहलनि जे जँ एनामे भाग बनितै तँ सब किओ 20-20टा कनियाँ राखितै ।

अमित मिश्र

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