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मंगलवार, 9 जुलाई 2013

दारू

110. दारू

"ई मरदाबा हन्ड्रेड परसेन्ट बहसि गेलै ।"कनियाँक मिरचाइ सन बोल सूनि सरोज अंग्रेजी दारू गिलासमे ढारऽ लागल ।ई देख कनियाँ पर्स टेबुलपर फेकैत गरजल "देखहक तँ, लाज-लेहाज घोरि कऽ पी गेल छै ।हम भरि दिन बैंकमे रुपैया गानैत रहै छी आ ई दारू पीबैत अछि ।ई नै जे कने भात-दालि रान्हि कऽ राखने रहत ।"साँस लेबाक लेल रूकल फेर बाजल "मरदाबाकेँ दारूवाज बनेनाहर जँ सामने आबितै तँ टाँग-हाथ छोड़ा दितियै ।" कनियाँक गोस्सा देख सरोज बाजल "गै, हमरा तँ तूँही दारूवाज बनेलहीं ।जँ तोहर मीठ बोल बला ठोर रहितौ तँ हम तनावग्रस्त हेबे नै करितियै ।हम तँ सिनेहेक निशामे मातल रहितौं, दारूक जरूरति नै पड़तै ।"
"तोहर ई अभिलाषा तँ कहियो नै पुरतौ ।हमर नेह तँ कोनो ए॰सी॰ कार बला लेल जोगाएल छै ।" ई कहि कनियाँ चलि गेलीह आ सरोज दारू ढारऽ लागल ।

अमित मिश्र

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