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मंगलवार, 30 जुलाई 2013

कोहबर

127. कोहबर

हम हवा छी ।हमरा अहाँ नै देखब मुदा हम सबकेँ देखैत छी ।एखन हम एकटा भावी कोहबर घरमे छी ।बिधकरी आ दाइ-माइ सब देबालपर शुभ चित्र पाड़ैक ओरियान कऽ रहलछथि ।"गै सोनियाँ बाँस आ पुरनि पातक फोटो बना ने "
"यै बलहा बाली कोहबरक गीत उठाबू ने यै... कने लाल रंग लगाउ।"
"यै काकी, हमरा गीत सब नै आबैछ आ फोटो-ओटो तँ कहिया ने बिसरि गेलियै ।"
"हँ यै मैयाँ, आजुक रिमिक्सक जमानामे ककरा ई सब गीत इयाद छै ?"
भरल घर माँछक हाट बनि गेल छल तखने शहरी सोनियाँ कहलनि "सुनै जाउ ।एकटा उपाय अछि ।कोनो कैसेट बजा कऽ गीतक काज चलाओल जाए आ बजारमे सब तरहक फोटो भेटै छै ।तखरे साटि देल जाए ।"
सगरो कोहबर कृत्रिम अरिपन आ कृत्रिम गीतसँ चमकऽ-गुंजऽ लागल ।हम एकातमे ठाढ़ नव जोड़ीकेँ देखरहल छी ।हमरा कृत्रिम कोहबरमे दुनूक बीच कृत्रिम प्रेमक आभास भऽ रहल अछि ।

अमित मिश्र

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