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बुधवार, 31 जुलाई 2013

नुकाएल प्रेम

128. नुकाएल प्रेम

"हमरा माँफ कऽ दे...हमरा नै मार...आइये हम तोहर फोटो फाड़ि देबौ...सबटा पत्र जड़ा देबौ...हमरा छोड़ि दे...भू..त...भूत..."एकाएक शीतल स्पर्शसँ भूत पड़ा गेल ।हमरा आगूमे डेराएल सन कनियाँ ठाढ़ छलीह ।एखने घटल घटनाक बारेमे सोचऽ लागलौं ।
एखने हम सोलहो श्रृंगारसँ सजल साक्षीकेँ देखलौं ।साक्षी... हमर छात्र जीवनक संगी साक्षी ।आब ओकर कोनो साक्ष्य धरतीपर नै भेटत ।एक दिन फँसरी लगा लेने छल ।कारण बादमे पता चलल ।ओ हमरासँ प्रेम करैत छल ।हम की करैत छलौं ओकरासँ ...हमरो पता नै ।हमर वियाहे दिन तँ ओकर लहाश उठल छलै ।वएह साक्षी आइ एतऽ आएल छल ।सोलहो श्रृंगार केने, आखिर ककरा लेल ?सोचिते रही कि कनियाँ कहलनि "की भेल ? नीनमे भूत भूत चिकरै छलहौं ।"
"हँ...नै...ओ भूत नै छल...ओ वर्तमान...भविष्य...नै नै भूते छल ओ । "
"अहाँ तोतराइ किए छी ?एते डेराउ नै ।कोनो हवा-बसात हेतै ।अस्थिर भऽ जाउ ।जा, बिसरि गेलियै, आइ अपन मैरेज डे छै ।"एते बाजि कनियाँ काजमे ओझरा गेलीह, मुदा हमरा लागल जे हमर मैरेज डे दिन साक्षीक एनाइ अनचोका नै छल ।ई हमर ओकरा प्रति नुकाएल प्रेम छल जे हम ओकरा कहियो नै दऽ सकलियै, आइयो नै... ।बीच्चेमे जागि वा जानि-बूझि कऽ ओकरासँ दूर भऽ गेलियै ।

अमित मिश्र

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