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रविवार, 21 जुलाई 2013

बालुक ढेरी

116.बालुक ढेरी

दस-बीस टा लोक सदिखन एहि दरबज्जापर जुटले रहैत छलथि ।डेकचीक डेकची चाह बनैत छल ।पानक पीकसँ रंगाएल रहैत छल एतुका धरती ।चौबीसमे सोलह घण्टा व्यस्त रहैत छलथि सुकन बाबू ।डाकडरी, समाजिक काज, कोर्ट-कचहरी सन कतेको काजक एक मात्र निपुन्न आदमी छथि सुकन बाबू ।मुदा...मुदा आब दरबज्जा विरान भऽ गेल छै ।सुकन बाबू दमा आ टीबीसँ परेशान सदिखन खोंखैत रहैत छथि ।संक्रमणक डरे आब लोक नै आबैत अछि ।थूक-खखारपर जीवन काटैत सुकन बाबू सोचैत छथि, ई जीवन तँ बालुक एहन ढेरी अछि जे एकटा छोट सन बिहाड़िमे उड़िया कऽ अपन अस्तित्व मेटा दैत अछि ।

अमित मिश्र

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