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मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

मैथिली बाल कविता- चन्ना बनि क चोर

बाल कविता-254

चन्ना बनि क' चोर

साँझेसँ ओ संगे छलथि
कखन पड़ेलथि बनि क' चोर
और बतियबितौं हम चन्नासँ
कत' गेलाह ओ भोरे भोर

गर्मीसँ भरि दिन व्याकुल हम
पंखा लग पेटकुनियाँ देने
सूरजकेँ ओ मारि भगा क'
आएल छलथि ओ ठंढी लेने

देखिते माँगलहुँ दूध आ भात
पहिने हुनका लागि क गोर
फेरो एलै ललकी सूरज
अपन गर्मी संगे लेने

ताकत एकर भेलै दुगुन्ना
एहि ठाँसँ चन्नाकेँ गेने
किओ बजाबह मामाकेँ फेर
चल' देताह नै एकर जोर

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