गरीबी रेखा
किछु लोकक ओकादि ढैंचा सन बढ़ैत अछि
साँझमे दू इन्च आ भोरमे पाँच धरि
ओ जते आक्सीजन साँसमे लै छथि
तैसँ बहुत बेसी सी॰ओ॰टूकेँ
गाड़ीक साइलेन्सरसँ निकालि दै छथि
अवान्छित घास जकाँ छँटबैत छथि जुल्फी
दस रंगक लोक हुनक दुआरिपर आबिते रहै छथि
ओ अपन दू महलापर चढ़ि
सूर्यकेँ अर्घ दैत रहै छथि
सूर्यकेँ उगिते पड़ाइ छथि शीतल शयनागरमे
हुनका सूर्यक तापसँ छत्तीसक आँकड़ा छन्हि
किएक तँ ओ गरीबी रेखाक नीच्चा आबैत छथि
किछु लोक माँछी-मच्छर जकाँ
सब दिन मरिते रहैत छथि
जते आक्सीजन हुनका लेबाक चाही
सेहो नै भेटैत छन्हि हुनक हिस्सामे
छप्पररहित घरमे अकुलाइत रहैत छथि
सब दिन सूर्यकेँ अर्घ देनाइ सम्भवो नै छन्हि
हुनका तँ सूर्येसँ अटूट प्रेम छन्हि
किएक तँ ओ गरीबी रेखाक नामो नै जानैत छथि
किछु लोक एहि दुनूक बीचमे लटकल छथि
ओ दुनूक शोषण करैत रहै छथि
हम, अहाँ कोन ठाम छी से भजारि लिअ
किएक तँ आब रेखाक चेन्ह मेटा रहल छै
आ एक्कै बेर दुनू दिशसँ भयंकर बिस्फोट हेतै
अमित मिश्र
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