गजल-1.68
राति छै बेसी बचल कम जाम* छै
हमर नोरक दाम ओकर नाम छै
राजनीतक उठल बिर्रो देश भरि
जे छलै दायाँ बुझू से बाम छै
घाव टिभकै खूब चिट्ठी खोलिते
पस हियामे भरल नेहक दाम छै
गारि पढ़ियो वा अहाँ लाठी धरू
देशकेँ चक्का रहल बस जाम छै
आँखिमे छै भोर सोहावन "अमित"
बाँहिमे बान्हल नविन सन गाम छै
*दारू
2122-2122-212
अमित मिश्र
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