गजल-1.67
तरेगण लाख छै तैयौ नगर अन्हार रहिते छै
बरू छै भीड़ दुनियाँमे मनुख एसगर चलिते छै
सजल छै आँखिमे सपना नदी नाला हरित धरती
जकर बेटा सुखी ओ माइक श्रृंगार सजिते छै
गजब छै रीत दुनियाँ केर मरने राख धरि फेकै
मुदा सदिखन सभक मनमे अमिट सन यादि बसिते छै
अहा वा आह धरि बाजब अहाँ आ बाट निज पकड़ब
अहींकेँ हास्य अभिनयमे हमर संसार जरिते छै
सगर छै खेल आखरकेँ हँसाबै आ कनाबै छै
कतौ टुटिते हिया छै आ कतौ नव नेह रचिते छै
1222 तीन बेर सब पाँतिमे
अमित मिश्र
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