144. मुर्तीकार
गाममे प्रतिस्पर्धाक माहौल बनल छल ।सटले-सटले दू टा गुट दुर्गा पूजाक तैयारीमे जुटल छल ।मुर्तीसँ लऽ कऽ पंडाल धरि नीक बनेबाक लेल दुनू गुट मेहनत कऽ रहल छलै ।दुनू एक्कै टा मुर्तीकारकेँ प्रतिमा बनेबाक लेल नियुक्त केने छल आ एक रंग मुर्ती बनेबाक निर्देश देने छल ।जखन मुर्ती बनि कऽ तैयार भऽ गेल तँ दुनू गुट मुर्ती देखबाक लेल पहुँचल ।मुर्ती देखलाक बाद दुनू मुर्तीकारकेँ गंजन करऽ लागल किए तँ दुनू मुर्ती एक दोसरसँ भिन्न छल ।दुनूमे बढ़ियाँ कोन ?ककरो किछु फुराइत नै छलै तेँ दुनू गुटमे झगड़ा शुरू भऽ गेल । ई देख मुर्तीकार बाजल"औ जी, अहाँ सब किए झगड़ैत छी ?सबसँ पैघ मुर्तीकार तँ भगवान छथि ।सब किओ हुनका पूजै छथि तखनो सभक मुँह-कान भिन्न रहैत छै ।दू टा मानव कखनो समान नै होइत छै ।फेर कहू, हमर मुर्ती कोना समान रहितय ।जखन धरि अहाँ सब झगड़ैत रहब, मुर्ती भिन्ने लागत ।झगड़ा छोड़ि दियौ, फेर देखियौ, मुर्तीमे भिन्नता खतम भऽ जाएत ।सब दुर्गे जी देखाइ देताह ।"
दुनू गुट शान्त भऽ गेल छल ।
अमित मिश्र
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