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रविवार, 15 सितंबर 2013

गदहा गदहे सन रहि गेल

बाल कविता-103
गदहा गदहे सन रहि गेल

छुक छुक रेल भागै छै
घर्र घर्र चक्का बाजै छै
पों पों भोंपू बाजै छै
टिसने टिसने रूकै छै
नंदन वन केर एक टिसनपर
गदहा चढ़लै मोटगर डटगर
खूब मचल छल धक्कम-मुक्की
चीज-बीत केर लुझ्झम-लुझ्झी
सबटा यात्री सीटपर बैसल
सीधा गदहा गेटपर लटकल
दौड़ैत गाड़ी तेज भेल जाइ
उड़लै गमछी टोप उड़ल भाइ
तखने एलै टी॰टी॰ कड़गर
बचलै यात्री जे छल चरफर
गदहा राम छलथि बेटिकट
फाइनो दऽ नै लेलक टिकट
धेलक सिपाही लऽ गेल जेल
गदहा गदहे सन रहि गेल

अमित मिश्र

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