हम प्रेमी छी !
जहियासँ प्रेम केलौं
लड़ि रहल छी तहियेसँ
कखनो समाजसँ
कखने अपन मोनसँ
सब ठाम उठा-पटक
सब ठाम एक्कहि ललक
केवल जीतबाक इच्छा
अपनाकेँ बुझैत छी राजा
हमहीं सबसँ पैघ काबिल
समाजो तँ अपनेकेँ बुझैछ
महारथी, पैघ योद्धा
हम प्रेमी छी तेँ लड़ै छी
वा मानव छी तेँ लड़ै छी
जानि नै किए लड़ै छी ?
अपन कथित प्रेमक लेल
लड़ि कऽ जगसँ जीत लै छी
मुदा, हारि जाइ छी हम
जखन माए-बापक प्रेम
पुछैत अछि प्रश्न, आ
हम निरूत्तर भऽ जाइ छी
अमित मिश्र
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