प्रिय पाहुन, नव अंशु मे अपनेक हार्दिक स्वागत अछि ।

बुधवार, 30 अक्तूबर 2013

जीउलाह

162. जीउलाह

कम्पनीमे छुट्टी भेलाक बाद वरीय कलर्क राघो बाबू अपन केबिनसँ बहरेलनि ।बाहर आबिते सहकर्मी सब संग भऽ गेलनि ।जुनियर कलर्क बिसो बाबू कहलनि "चलू राघो बाबू आइ पार्टी भऽ जाए ।"
"कतऽ जेबै आ कथीक पार्टी ?" राघो बाबू कथा बुझबाक प्रयास करैत कहलनि ।
बिसो बाबू फरिछाबैत कहलनि "अरे बेसी नै, बस चाट-पकौड़ी, दू-चारि पीस मिठाई आ चाह ।सुनलियै हें जे नाकापर बला दोकानमे बड नीक बनबै छै ।"
राघो बाबूक मुँह लटकि गेलनि ।लागै जे किओ बनल-बनाएल काजपर पानि ढारि देने होइ । नकारात्मक उत्तर सूनि बिसो बाबू पोल्हबैत कहलनि "एना किए मना करैत छी ?एँ यौ नेनपनमे तँ अहाँ एकर प्रेमी छलियै ।नीक चीज तँ खोजिते रहैत छलियै ।अहाँ एहन जीउलाह आदमी चाट-पकौड़ीकेँ कोना मना कऽ सकै छै !"
"यौ भाइ, पहिने हम एसगर रहियै तँ जीउलाह बननाइ भारी नै छलै मुदा आब . . .आब तँ जिम्मेदारी माँथपर छै । अपने नीक-नीकुत खेबै की बेटा-बाटीकेँ खुएबै ?" ई कहि डेरा दिस चलि देलनि ।

अमित मिश्र

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें