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शनिवार, 2 नवंबर 2013

दीप

163. दीप

एकटा बूढ़ कुम्हार शहरक अतिव्यस्त बाटपर ठाढ़ छल ।माँथपर छीट्टा छलै जाहिमे नीक नीक कलाकृतिसँ सजल दीप राखल छलै ।छीट्टाक बोझसँ वा उमरक प्रभावसँ ओकर डाँर झूकि गेल छलै ।गाड़ीकेँ रुकैत देख ओ झट दऽ ओकरा लऽग पहुँचि जाइ "सरकार, दिवाली लेल सुन्दर-सुन्दर दीप अछि ।मात्र दूइये टाका...एक्को टा कीन लिअ...भोरसँ एक्को टा नै बिकाएल ...भुखले छी...छूटो देब...एगो कीन लिअ... ।"
सब बेर ओ एते बात बाजै आ सब बेर गाड़ी बला ओकरा फटकारि दै "रै बुड़बक ।आज के युग में दीप-बीप नहीं चलता है ।अब तो एक-से-एक मरकरी आ गया है ।जाओ रास्ता नापो ।समय खोटी मत करो ।" एते कहि गाड़ी बला फट दऽ गेट बन्द कऽ लै ।साँझमे चौकीदार अपन हिस्सा लेबाक लेल आबि गेलै ।ओकरा देख कुम्हार बाजल "बाबू जी ।आइ नै दऽ सकब ।पिछला चारि दिनसँ किछु आमदनी नै भेल ।कने किछु खुआ दिअ हमरा । पता नै अहाँकेँ अझुका हफ्ता दऽ सकब की नै, कारण जे हमरो जीवन तँ बिनु तेलक दीपे सन अछि ।जानि नै कते दिन धरि जरि सकत ।"

अमित मिश्र

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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    आपको और आपके पूरे परिवार को दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
    स्वस्थ रहो।
    प्रसन्न रहो हमेशा।

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  2. रचना पढ़ने के लिए कोटि-कोटि धन्यवाद ।
    आपको भी दिया-बाती की हार्दिक शुभकामना

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  3. बहुत नीक आ समाजक सत्य दर्शावैतलघु किन्तु सुन्दर रचना :)
    दिपावली के बहुत बहुत हार्दिक शुभकामना ....

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