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शनिवार, 28 दिसंबर 2013

गजल

गजल-1.71

हँ सम्भव छै हमर आँखिमे मिसियो पानि नै होइ
असम्भव छै हुनक मोनमे कोनो आनि* नै होइ

सबूतो संग रखियौ बदलबै छै जखन दिल अपन
जखन धरि नजरिकेँ बातकेँ कोनो मानि नै होइ

हमर तोहर कथी छै जगतमे की ककर छै बाज
मरै धरि भोग पाछू धनक छप्पर तानि नै होइ

कुकुर सन जीव जिनगी महलमे बैसल तँ काटैछ
मरै छै वैह जै लोक लऽग कुकुकर बानि* नै होइ

जखन टूटैछ ककरो हिया छिड़िया जाइ छै सगर
हँसब लागैछ भारी "अमित" कनिको कानि नै होइ

1222-122-1222-212-21
अमित मिश्र

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