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शुक्रवार, 6 जून 2014

बस एकटा गर्लफ्रेन्ड

183. बस एकटा गर्लफ्रेन्ड

बाप-बेटामे गरमागरम बहस भऽ रहल छलै ।उचक्का, आवारा सन पदवी प्राप्त बेटाक लेल बापक चिन्ता जायज छलै, मुदा बेटा बुझै बला होइ तखन ने ! बाप बुझा-बुझा कऽ कहि रहल छल "बौआ पढ़ि ले ।किछु आखरक ज्ञान भऽ जेतौ तँ नीक जकाँ कमा-खटा लेबें ।" मुदा जानि नै कोन मुहछी मारने छलै जे बेटा पढ़ैक लेल तैयारे नै छलै ।बड बुझेलाक बाद जखन बात नै बनलै तँ बापकेँ तामस चढ़ि गेलै ।बाप तमसाइत बाजल "जँ नै पढ़बे तँ एखने हम घरसँ निकालि देबौ ।जखन रने-वने बौआए पड़तौ, अँतरी कुलबुलेतौ तँ पता चलतौ ।"
बेटा ई सब सुनि हँसऽ लागल "हा . . .हा. . .हा . . .एतेक छोट सजा !आइ-काल्हि टाका आ भोजनकेँ के पुछै छै !हमरा एहन दिमाग बला तँ बैसल सोहारी तोड़तै ।बस एकटा गाय सन सुध गर्लफ्रेन्ड आ मीठ बाजबाक कला चाही ।से अछिए ।आइ-काल्हि गरम माँउसक किरायेदार बड भेटै छै बाबू ।चिन्ता जुनि करू ।"
बापक अंग-अंग लोथ भऽ गेल छलै ।

अमित मिश्र

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