बाल कविता-145
धरतीक सिसकी
की, अहाँ सुनलियै कहियो गाछक चित्कार ?
जखन कुल्हरिसँ ठाँढ़िपर करै छी प्रहार
तखन पातक कँपकँपीपर करै छी विचार ?
की कखनो गंगा-यमुनाकेँ सुनलियै कानैत ?
वा निसबद रातिमे माँछकेँ छचपटाइत
नदीक दर्द बुझलियै अहाँ कचरा फेकैत ?
की, देखलियै कखनो हवाकेँ दम फूलैत
चिमनीक नीच्चाँ कौआ- मैनाकेँ खसैत ?
पर्यावरण लेल किछु केलियै कर्तव्य बूझैत ?
कोनो साँझ धरतीसँ अहाँ बतियैयौ
संतान लेल माएक व्याकुलता गमियौ
तखन हमर प्रश्नक उत्तर लिखियौ
जँ नै सूनि सकब धरतीक सिसकीकेँ
तँ अधिकार नै अछि मनुखक पदवीकेँ
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