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मंगलवार, 7 जुलाई 2015

रहस्य

188. रहस्य

तीन टा लंगोटिया यार एकटा पार्कमे बैसल अपन पारिवारिक मुद्दापर गरमागरम बहस कऽ रहल छल ।बहसक विषय सभक जीवनसंगिनी आ ओकर मनोविज्ञान छलै ।पहिल मीत बाजल," भाइ हम तऽ पराशान भेल छी ।आजुक बिगड़ैत जमाना देख अपन कनियाँपर कड़ा शासन केने छी ।एना बूझ जे हमरासँ पुछिये कऽ भोजन करैए ।भाइ, तैयो हमर दामपत्य जीवन नीक नै अछि..."
बात खतम होइसँ पहिने दोसर मीत बाजि उठल,"तूँ एतबे लेल झखै छेँ ।तूँ तऽ दाबि कऽ रखने छेँ तेँ मुदा हमरा देख ने ।हम तऽ फ्री छोड़ने छियै तखनो हमरा दुनूमे पटरी नै खाइ छै ।हम तऽ अपने सोचमे पड़ल छी जे सुखी दामपत्य जीवनक रहस्य की छै? "
सभक गप सुनि तेसर मीत कहलक,"रौ, सुखी दामपत्य जीवनक रहस्य बड हल्लुक छै ।कनियाँकेँ कने कसि दहीं, कने छूट दहीं ।जँ बेसी कसबहीं तँ ओकर मोन कुंठित भऽ जेतै आ जँ बेसी फ्री करबहीं तँ मोन बदमाश भऽ जेतै ।दुनूमे सामंजसता रहबाक चाही ।"
दुनू मीतक मुँहपर संतुष्टीक रेखा झलकि रहल छल ।

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