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शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

नजरि-गुजरि


3.15 .  नजरि-गुजरि

बौआकेँ देख क' बुढ़िया बाबी मने परदादी कहलनि-बौआ त' बड़ सुन्दर छै ।आँखि नम्हर आ गोल मुँह नीक लागै छै ।कने पएरक घुच्ची टेढ़ लागै छै बस।
घरसँ सुनैत नवकी परपुतौह मुँह बिचका रहल छलै ।कने काल बाद जखन घरबला एलै त' ओ मुँह लटका बैसल छलै ।घरबला बड मनेलकै त' बाजल- अहाँ जँ हमरासँ प्रेम करै छी त' बौआकेँ दादी कोरा नै जाए दियौ ।
"किए, की भेलै से ?"
"किछो भेलै ने मुदा भ' जेतै ।बुढ़िया बौआकेँ नजरियाबैत छलय ।"
"मुदा ..."
"मुदा तुदा किछ नै ।जे कहि देलौं सएह हेतै |नै त' हमरा नैहर द' आउ ।"
बेचरा घरबला किछु नै बाजि सकल ।मोनमे सोचैत रहल वएह बुढ़िया त' कबुला क' पोता माँगने छलै ।तखन ओ कोना....।

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