प्रिय पाहुन, नव अंशु मे अपनेक हार्दिक स्वागत अछि ।

बुधवार, 21 फ़रवरी 2018

पराकाष्ठा


मैं उसका पहला प्रेम था
एक नौसिखिया की तरह
हर चीज में उताबलापन था
प्रेम जताने का बस एक उपाय था
हमेशा एक-दूसरे का दीदार करना
हर दिन वहीं दिनचर्या
वही मंदिर का पिछवाड़ा
गाँव का हटिया, बथुआ का खेत
जो पहले अच्छा लगाता था
बाद में बोझ लगने लगा
मन उब सा गया था उसका
मिलना कम हो गया
बिना देखे नींद नहीं आने बाली आँखों में
बिना देखे हीं अब नींद आने लगी
दीदार तो क्या, ख्वाब भी नहीं आते अब
मैं सोचने लगा था
शायद प्रेम कम हो गया है
पर ये क्या ?
मैं आजकल बेचैन रहने लगा हूँ
घुटन सा महसूस करता हूँ
मैं सिगरेट पिने लगा
या सिगरेट मुझे, पता नहीं
दिल खाली खाली
और जीवन अधूरा लगने लगा है
एक अरसे बाद वह सपने में आई
उबे हुए मन से मैने मुँह फेर लिया
वह ठहाका लगाने लगी
फिर गहरी साँस लेकर बोली
ऐसे क्यूँ हो ?
मैं ने कहा तुम्हारे कारण ।
वह लजाते हुए बोली धत् !
और भाग गई
मुझे लगा प्रेम की पराकाष्ठा आ गई

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें