अझुका रचना- बाल कविता
5.01(छठम संग्रहक पहिल कविता)
* जँ घोड़ा उड़ैत रहितै *
जँ घोड़ा उड़ैत रहितै, नील गगनमे उड़ि जैतै
चुन्नी-भुस्सी ओकरा दितियै, पेट भरि दौड़ैत रहितै
कान ओकर रहितै स्टेरिंग, इशारापर घुमैत रहितै
जिम्हरे चाहितौं ब्रेक लगबितौं, ठामेपर रूकैत रहितै
खाली बाटमे ओ दौड़ितै, रहितै जाम त' उड़ि जैतै
तेल मोबिलक लफड़ा नै छल, कोनो खेतमे चरि जैतै
राति-बिराति चन्नाकेँ देखिते, चान धरि चलि जैतियै
तरेगणसँ किछु माँगि इजोत, घर अपन चमका दितियै
पार्क करैक दिक्कत नै छल, पार्केमे दौड़ा दितियै
जखने रोकितै कोनो पुलिस, कान अमठि उड़ा दितियै
जँ किओ हमरा मर' अबितै, चारि दुलत्ती लगबा दितियै
एलार्म लगबैक कोन जरूरत, समय होइते हिनहिना दितियै
घरक पाछू एक अस्तबल, ओकरा लए बनबा दितियै
जँ घोड़ा उड़ै बला रहितै, हेलीकॉप्टरोकेँ पछुआ दितियै
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