प्रिय पाहुन, नव अंशु मे अपनेक हार्दिक स्वागत अछि ।

शुक्रवार, 15 मार्च 2013

रुबाइ

रुबाइ-164

सोचैत सोचैत किओ देह गलबै छै
बिनु सोचने किओ सब टा काज करै छै
सूरज जकाँ अपन मरजीसँ आबै सोच
ककरो अधिकारमे तँ नै रहि सकै छै

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