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शनिवार, 11 मई 2013

झुठपकड़ा मशीन लगाबू

बाल कविता-51
झुठपकड़ा मशीन लगाबू

बौआ काका झूठ बाजै छथि, पसरि कऽ एसगर माँझ दलान
हरिश्चन्द्र सन शासक छलै, सोनाक चिराँइ छल हिन्दुस्तान
चोरी-चकारी, झूठक खेती, नै उपजै छै गहूँम आ धान
कोयला धरि पताल पहुँचि गेल, नै छै कत्तौ सोनाक खान

मास्टर साहेब झूठ कहै छथि, धरती छै समतोला समान
ताहिपर छै ग्रह ई बड़का, एकर पिछलग्गू ग्रह छै चान
हमरा चहुँ दिश समतल लागै, गाम-शहर आ आँगन-दलान
ग्रह केवल राहु केतु शनिचरा, हमर मामा छथि पुजनिय चान

बाबा-बाबी तँ झूठे बाजथि, खिस्सामे कऽ परीक व्याख्यान
दूधमे बिनु चिन्नी देने, पियाबथि चला कऽ झूठक वाण
एहि बेर बाबू परदेशसँ एथिन, करबै सबहक झूठक बखान
कहबै झुठपकड़ा मशीन लगाबू, बनतै सत्यक घर हिन्दुस्तान

अमित मिश्र

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