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शनिवार, 4 मई 2013

गति-बोध

बाल कविता-40
गति-बोध

गलि-गलि बरफ झरना बनि जाइ छै
गर्जन करैत झरना नदी बनि जाइ छै
शहरकें भीजबैत, गामक पियास मेटाबैत
माँछ, मखान, कमलक मीता बनि जाइ छै

दुनू तटकें सगरो एकात केने
दौड़ल जाए लक्ष्य दिश धियान देने
बाधा-विघ्नसँ लड़ैत तोड़ैत-मोड़ैत
स्वयं बाट बनबैत, बिनु विश्राम केने

पटकि माँथ पाथरपर तन फेनाएल
बनि बिजली उर्जा सगरो जगमगाएल
कूड़ा-कचरा खा, मरितो दम धरि
छातीपर उठबै जहाज भरिआएल

कल-कल निर्मल अविरल प्रतिपल
सागर दिश दौड़ै निर्भय निश्छल
लवण युक्त माहुर, तैयो देख प्रेमक भाव
जीवन तेजैछ नदी दऽ प्रीत अचल

जँ सीख सकी तँ सीख बात एकाध
एक लक्ष्यपर अर्जुन बनि वाण साध
नदी सन बाँटैत जो सगरो प्रीतक धार
हरियाएल रहतौ मनुख तोर जीवनक बाध

अमित मिश्र

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