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मंगलवार, 13 अगस्त 2013

टुटलै बान्ह

बाल कविता-97
टुटलै बान्ह

उपर नभमे टुटलै बान्ह
निच्चा भेलै चक्का जाम
उबडुब भेलै ताल-तलैया
दौड़ल एलै बाढ़ि बलैया
घरक आगू बनलै पोखरि
ओछैन-बिछैन भेलै बोदरि
मच्छरदानीमे माँछ मारै छी
थम्ह पकड़ि खूब खेलै छी
हेलीकप्टर खूब उड़ै छै
लिट्टी-चोखा खूब खसै छै
खूब बनबै छी कागतक नाह
खूब हेलै छै वाह रे वाह
छप छप पानि सितारक वादन
गाम लागै छै स्वर्गक आँगन
मुदा भासि गेल कत्ते घर
फसल उजरि गेल चऽरक चऽर
ऐ बीच मरलै गायक बछिया
किओ ककरो नै सूनै बतिया
पेट गरीबक एखनो दागल
ऐ बाढ़िमे गाम अभागल
इनर देव बन्न करऽ बौछार
ऐसँ नीक छलै सुखार
एते बरसऽ जे नदी समा लै
बान्हेमे सब पानि सुखा लै

अमित मिश्र

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