133. ईद ?
पिछला एक माससँ चौबटिया खाली छलै ।ओतऽ राखल चारि टा ईटा किओ चोरा लेने छलै ।सड़ल आधा टा पटियाकेँ कुकुर-बिलारि भोज्य बस्तु बूझि नोंचि-नाँचि देने छलै ।मास भरिसँ सून भेल जगह आइ बहारल छलै ।ईटा बिनु फाटल पटियापर बैसल छलै जावेद ।बगलमे बैसाखी राखल छलै ।देहपर मात्र फाटल लुंगी आ गंजी, ठोरपर फुफरी पड़ल आ कारी केश गर्दासँ उज्जर भेल छलै ।हम लऽग जा जावेदकेँ आदाब केलियै ।उत्तरक प्रतिक्षा केने बिना पुछलियै "का हो जावेद, आज तँ तोरा आरकेँ पबनी छै न ।सब नव कपड़ा पहिरने छै आ तूँ..."
ओ बाजल "राम भाइ आज पबनी है लेकिन हमरा नै ।एक माह से रोजा रहै तेँ नै ऐलियै ।आज ऐलियै तँ केओ भीखे नै दै है ।सब ईद मनबैमे व्यस्त है ।सालो भर हमरा जे दिन भीख भेटै है वैह दिन ईद होइ है ।अल्ला ताला केहू के भेजिहे तब न हमर ईद होइहे ।"
जावेदक बाद अल्लापर प्रश्न चिन्ह लगा देने छल ।आशा अछि जे किओ ओकर रोजा खोलि देत ।
अमित मिश्र
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